सोमवार, 5 मार्च 2012

संस्कृत भाषा मूल्यों और विचारों की संस्कृति

सरकार संस्कृत भाषा के विकास और उसे बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।  आज नई दिल्ली में १५वें विश्व संस्कृत सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि संस्कृत के अध्ययन को प्रोत्साहित करने के लिए कई कदम उठाये गए हैं। डाक्टर मनमोहन सिंह ने कहा कि संस्कृत भाषा में विश्व का सर्वश्रेष्ठ साहित्य है। साथ ही अंकगणित, चिकित्सा, वनस्पति शास्त्र, रसायन शास्त्र, कला और विभिन्न सामाजिक विषयों के ज्ञान का बहुमूल्य खजाना भी उपलब्ध है। डाक्टर मनमोहन सिंह ने कहा कि संस्कृत किसी समुदाय, सम्प्रदाय या विशेष धर्म की भाषा नहीं है।
संस्कृत भाषा मूल्यों और विचारों की वो संस्कृति है जिसमें भारत की सभी जातियों, संप्रदायों और धर्मो को अपने चरणों में जगह दी है। इसमें संकीर्णता और जातिवाद का  कोई स्थान नहीं। ये सद्भावना और बंधुत्व का प्रतीक है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि  संस्कृत भाषा ऐसी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है जो संकीर्ण नहीं है। उन्होंने कहा कि इसकी मूल भावना सहिष्णुता और सबको अपनाने की है। डा० सिंह ने कहा कि इस उदारता और सहिष्णुता को हमें अपने रोजमर्रा के जीवन में अपनाना चाहिए। इस अवसर पर मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि केवल भारत ही नहीं विश्व के कई अन्य देश भी सस्कृत को बढ़ावा दे रहे हैं क्योंकि यह विश्व की प्राचीन भाषाओं में से एक है।
भारतीय भाषाओं में बहुत कम प्राचीन, धार्मिक व दार्शनिक साहित्य उपलब्ध है। इस तरह संस्कृत के सहित्य का आकार विशाल है और आज भी इसमें जानने को बहुत कुछ है।
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